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आधुनिक हिन्दी के कुछ प्रसिद्ध लेखक और उनकी रचनाएँ

आधुनिक हिन्दी के कुछ प्रसिद्ध लेखक और उनकी रचनाएँ

आधुनिक हिन्दी के कुछ प्रसिद्ध लेखक और उनकी रचनाएँ

हिन्दी साहित्य की सभी विमायें लगातार प्रगति की ओर अग्रसर हैं। वर्षों से यह भाषा भारत के आतंरिक क्षेत्रों को जोड़ने का कार्य करती आयी हैं और इसका माध्यम रहे हैं वह अनगिनत लेखक, कवि, सम्पादक, पाठक व रोज़मर्रा की बोली में इस्तेमाल करने वाले लोग, जिन्होंने इसे लगातार मुख्य धरा में बनाये रखा है। यदि आप भी हिन्दी साहित्य के शौक़ीन हैं, तो कुछ विख्यात आधुनिक हिन्दी लेखकों और उनकी अनमोल कृतियों से आपका रूबरू होना बहुत आवश्यक है। ऐसे ही क़लम के कुछ महारथियों से आज हम आपका परिचय करा रहे हैं।

मुंशी प्रेमचंद

धनपत राय से नवाब राय और फिर मुंशी प्रेमचंद तक के उपनामों का प्रयोग करते हुए प्रेमचंद (1880 – 1936) ने अपने जीवन के लगभग 35 साल साहित्य जगत को दिए। उन्हें आज भी यथार्थ का चित्रण करने वाले लेखकों की सूची में सबसे ऊपर गिना जाता है।

हिन्दी और उर्दू गद्य लेखन में निपुण यह लेखक अपनी सरल लेखन शैली और कहानियों के जीवन्त वर्णन करने के लिए विख्यात था।

प्रेमचंद ने सैकड़ों कहानियाँ, कई उपन्यास, जीवनियाँ और अनुवाद लिखे। इन सभी में मुख्य विषय सामजिक कुरीतियां, शोषण, दहेज़, बाल विवाह, गरीबी और भ्रष्टाचार रहा करते थे। उच्च कायस्थ घराने में जन्मे इस लेखक को गरीबी और मध्यम-वर्गीय परिवारों से जुड़े मुद्दों का इतना सहज चित्रण करना कैसे आया, यह भी एक रहस्य ही है!

गोदान, प्रेमाश्रम, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला, गबन आदि इनके कुछ प्रमुख उपन्यास हैं।

प्रेमचंद की एकमात्र पटकथा ‘मजदूर’ को हर जगह रोक और विरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि उच्च वर्ग के अनुसार यह मजदूर वर्ग को प्रोत्साहित कर सकती थी। ‘मंगलसूत्र’ प्रेमचंद के जीवन का अंतिम और अधूरा उपन्यास रहा, जिसके चार पाठ लिखने के बाद खराब स्वास्थ्य के चलते प्रेमचंद की मृत्यु हो गयी।

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (1890 – 1937) ने अपने जीवनकाल में ना जाने कितनी अद्भुत रचनाएँ लिखी। प्रमुख छायावादी कवियों में से एक होने के साथ-साथ इनकी गद्य कृतियाँ भी कमाल की हुआ करती थीं।

बृज भाषा से शुरू करके खड़ी बोली और संस्कृत-मिश्रित हिंदी तक का प्रयोग आपको इनकी रचनाओं में मिल जाएगा। कवि होने के कारण इनके लेखन में भी श्रृंगार रस की साफ़ झलक रहती थी। कल्पना, प्रेम और आध्यात्म का बेहतरीन मेल इनकी लेखन शैली को नयी धार देता है।

कहानियाँ, कहानी संग्रह, उपन्यास, निबन्ध, कवितायें और नाटक – जय शंकर प्रसाद हर प्रकार के गद्य लेखन में निपुण थे। भारतीय इतिहास में विशेष रूचि होने के कारण उनके नाटक भी उसी प्रकार के हुआ करते थे।

स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, राज्यश्री आदि जयशंकर प्रसाद के कुछ प्रमुख नाटक हैं। इन्होंने तितली, इरावती और कंकाल जैसे उपन्यास कई भी प्रकाशित हुए हैं। हालाँकि, काव्य संकलन ‘कामायनी’ के लिए इनको सबसे अधिक याद किया जाता है।

यशपाल

यात्रा वृत्तान्त से लेकर नाटक तक, यशपाल (1903 – 1976) हिन्दी लेखन की हर विधा में पारंगत थे। इनकी मार्क्सवादी सोच और सामाजिक मुद्दों को मार्मिक रूप से दर्शाने की कला लोगों को ख़ास रूप से पसंद आती थी।

यशपाल अपने विचारों को शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी भाषा में व्यक्त करते थे, इसीलिए ये बुद्धिजीवियों में ज्यादा मशहूर थे।

इनकी रचनाओं का मुख्य केंद्र सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे रहा करते थे। यशपाल की लेखनी को निचले तबके से कुछ ख़ास ही लगाव था। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सबसे बड़े पुरस्कार साहित्य अकादमी और राष्ट्रीय सम्मान पद्म विभूषण से नवाजे जा चुके लेखक यशपाल ने क्रांतिकारी और स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों पर भी खूब लिखा है।

मेरी तेरी उसकी बात, झूठा सच, पिंजरे की उड़ान (कहानी संग्रह), तर्क का तूफ़ान (कहानी संग्रह), देखा सोचा समझा (यात्रा वृत्तान्त) आदि इनके कुछ प्रमुख कार्य हैं। अपनी जीवनी ‘सिंहावलोकन’ का चौथा भाग पूरा किये बिना ही यशपाल ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

देवकी नंदन खत्री

रहस्यों से भरे उपन्यास और कहानियाँ तो हम सभी को पसंद हैं, पर क्या आप जानते हैं कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में इस प्रकार की रचनाएँ लिखना शुरू करने का श्रेय देवकी नंदन खत्री (1861-1913) को जाता है?

देवकी नंदन खत्री बोलचाल की हिन्दी में ही लिखा करते थे। इनकी लेखन शैली निश्चित ही अति-प्रभावी रही होगी, क्योंकि कहा जाता है कि उस समय इनके उपन्यास ‘चंद्रकांता’ को पढ़ने के लिए बहुत से उर्दूभाषियों और ग़ैर-हिन्दीभाषियों ने हिन्दी सीखी थी।

रहस्य से भरी कहानियों और उपन्यासों को लिखने वाले खत्री की काल्पनिक पात्रों की रचना में कोई सानी नहीं थी। कल्पना को सच का रूप देते हुए वह पाठकों को उपन्यास अंत तक बांधे रखने वाले वृत्तांतों को कुशलता से गढ़ लेते थे।

‘चंद्रकांता’, जिसे आज भी हिन्दी सिनेमा और साहित्य में अलग पहचान मिली हुई है, देवकीनंदन खत्री की ही रचना थी। कहा जाता है कि लोगों ने इसको पढ़ने के लिए देवनागरी लिपि सीखी थी! टेलीविज़न पर भी इस कहानी ने वर्षों तक लोगों का मनोरंजन किया है। इसके अलावा भी बाबू देवकीनंदन ने कई उपन्यास (कागज़ की कोठरी, भूतनाथ इत्यादि) लिखे और अपनी प्रिंटिंग प्रेस ‘लाहिड़ी’ से मासिक पत्रिका ‘सुदर्शन’ का वर्षों तक सफल संपादन किया।

अब आप इन हिन्दी लेखकों, लेखिकाओं ओर इनकी रचनाओं को जान तो गए ही हैं, तो इन्हें पढ़कर अपने अनुभव हमसे साझा करना बिलकुल मत भूलियेगा!

सुझाव: ऊपर दिए गए लेखकों के अलावा आप भीष्म साहनी, राहुल सांक्रत्यायन, वृन्दावन लाल वर्मा, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, धर्मवीर भारती और विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखित हिन्दी रचनाओं को भी पढ़ सकते हैं।

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